#Competitive_Student
ये कहानी कक्षा 12 वी के बाद शुरू होती है।।
मिडिल क्लास के सबसे निचले पायदान पर मौजूद सरकारी नौकरी की आस लगाए बैठे लाखों आकांक्षीयो की कहानी जो MBA,इंजीनियरिंग,मेडिकल एवं अन्य प्रतिष्ठित परीक्षाओं की तैयारी करने में असमर्थ हैं।।
उन्हें उनके घरवालों से सिर्फ महीने का मकान किराया,घर के खेत में उपजी धान का चावल एवं गेहूं का आटा, गैस भराने के लिए एवं लुसेंट किताब खरीदने के रुपए ही मिल सकता है।।
उनके सामने इन सीमित संसाधनों से महीने निकालने की चुनौती पहले बनी रहती है।।इस दौरान खाना बनाने में कितना कम समय खर्च हो इसका भी ध्यान रखना होता है।। दाल भात एवं आलु का चोखा एक ही समय में कैसे बनता है ये सिर्फ इनको पता है।।
खाना जल गया हो या सब्जी में नमक कम हो या फिर चावल पका ही न हो, खाते समय सभी का स्वागत ऐसे किया जाता है मानो किसानों के मेहनत को कद्र करने का ठेका इन्हें ही मिला हो।।
मां बाप के दर्द को अपने सपनों में सहेजना कोई इनसे सीखे।।
जिस समय जमाने को बाइक,आइफोन,फिल्म इत्यादि का आने का इंतजार रहता है उस समय इन्हें प्रतियोगिता दर्पण,वैकेंसी,रिजल्ट आदि का इंतजार रहता है।।
अपने अध्ययन के दौरान ये अपने आप को रूम में ऐसे बंद रखते हैं मानो लाकडॉउन का कंसेप्ट इन्होंने ही दिया हो।।
मेडिकल वालों को जीवविज्ञान पढ़ना है, इंजीनियरिंग वालों को रसायन एवं भौतिकी ही पढ़ना है,MBA वालों को बिजनेस ही पढ़ना है मगर इन्हें सबकुछ पढ़ना है।।
कुछ को भारत के राज्यों की राजधानी पता नहीं और इन्हें देखिए इनसाइक्लोपीडिया एवं ब्रिटानिका से लोहा लेने चल पड़े हैं।।
जहां एक ओर दुनिया दिवाली में पटाखे फोड़ने में व्यस्त रहती है वहीं इन्हें लुसेंट किताब में थारू जनजाति के दिवाली को शोक के रुप में मनाने का कंसेप्ट एवं पटाखे से निकलने वाले हरे रंग बेरियम के कारण पढ़ने की व्यस्तता रहती है।।
जहां लोगों में देशभक्ति की भावना सिर्फ 15 अगस्त एवं 26 जनवरी के दिन ही उमरती है वहीं रोजाना आजादी के योद्धाओं के योगदान पढ़ना इनके डेली रुटीन में है।।
जहां आज भी समाज में जात-पात,धर्म,संप्रदायिकता का जहर विद्यमान है वहीं इनके कमरे में एक ही थाली में विभिन्न जाति एवं धर्मों का हाथ निवाले को उठाने के लिए एक साथ मिलता है।। इससे बढ़िया समाजिक सौहार्द का उदाहरण कहीं और मिल ही नहीं सकता।।
कुल मिलाकर इतिहास के गौरांवित गाथाओं से लेकर वर्तमान घटनाओं के विविधताओं को समेटना इनकी आदत सी बनी रहती है।।
दुनिया जहां फास्ट फूड के चर्बी को जिम के ट्रेडमिल पर घटाने में व्यस्त हैं वहीं इन्हें स्प्रिंट एवं मैराथन शरीखे फिजिकल अभ्यास हेतु सड़क,खेत इत्यादि को माध्यम बनाना पड़ता है।।
सरकारी नौकरी में मेडिकल वालों,इंजीनियरिंग वालों का अभिरुचि उत्पन्न होने में सिर्फ इनका मेहनत है जिसके चमक से भारी भरकम लागत वाले नौकरियां भी फिकी पड़ गयी है।।
लक्ष्य इनके इतने सार्थक है कि लड़की वाला दुसरे पेशे से जुड़े लड़कों को मानो ऐसे भगा रहा हो जैसे अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप को भगाया गया एवं सरकारी नौकरी प्राप्त लड़कों की खोज इतनी है जितना कोरोनावायरस का वैक्सीन।।
कुल मिलाकर इनका एक ही लक्ष्य है परीक्षा को पास कर मां बाप को वो सबकुछ देना जिसके लिए वो एक दिन तरसे थे।।
मुझे गर्व है कि मैं ऐसे लड़कों मे से ही एक हूं, और अब अपनी मंजिल तक पहुंचने की कोशिस का एक छोटा सा जरिया भी हूं 🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏
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